चित्तरंजन दास (जन्म- 5 नवंबर, 1870 - मृत्यु- 16 जून, 1925) एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका जीवन 'भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन' में युगांतकारी था। चित्तरंजन दास को प्यार से 'देशबंधु' (देश के मित्र) कहा जाता था। ये महान राष्ट्रवादी तथा प्रसिद्ध विधि-शास्त्री थे। चित्तरंजन दास 'अलीपुर षड़यंत्र काण्ड' (1908 ई.) के अभियुक्त अरविन्द घोष के बचाव के लिए बचाव पक्ष के वकील थे। 'असहयोग आंदोलन' के अवसर पर इन्होंने अपनी वकालत छोड़ दी थी। 1921 ई. में अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के अधिवेशन के ये अध्यक्ष थे। ये 'स्वराज्य पार्टी' के संस्थापक थे। इन्होंने 1923 में लाहौर तथा 1924 में अहमदाबाद में 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस' की अध्यक्षता भी की थी।
5 नवम्बर/बलिदान-दिवस
युवा सत्याग्रही गुलाबसिंह का बलिदान
मध्य प्रदेश का एक बड़ा भाग परम्परा से महाकौशल कहा जाता है। इसका सबसे बड़ा एवं सांस्कृतिक रूप से समृद्ध नगर जबलपुर है। नर्मदा के तट पर बसा यह नगर जाबालि ऋषि के तप की गाथा कहता है। इसका प्राचीन नाम जाबालिपुरम् था, जो कालान्तर में जबलपुर हो गया। भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी तथा जबलपुर को संस्कारधानी कहलाने का गौरव प्राप्त है। आचार्य विनोबा भावे ने जबलपुर को यह नाम दिया था।
जबलपुर के निकट ही त्रिपुरी (वर्तमान तेवर) नामक नगर है। यहीं के क्रूर राक्षस त्रिपुर का वध करने से भगवान शिव त्रिपुरारी कहलाए। यहां पर ही 1939 में कांग्रेस का ऐतिहासिक त्रिपुरी अधिवेशन हुआ था। इसमें नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी द्वारा मैदान में उतारे गये प्रत्याशी पट्टाभि सीतारमैया को कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में हरा कर हलचल मचा दी थी।
इसी जबलपुर नगर में 1928 में श्री लक्ष्मण सिंह के घर में एक तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। माता-पिता ने उसके गुलाब के समान खिले मुख को देखकर उसका नाम गुलाब सिंह रख दिया। सब परिजनों को आशा थी कि यह बालक उनके परिवार की यश-सुगंध सब ओर फैलाएगा; पर उस बालक के भाग्य में विधाता ने देशप्रेम की सुगंध के विस्तार का कार्य लिख दिया था।
1939 के त्रिपुरी अधिवेशन के समय गुलाबसिंह की अवस्था केवल 11 वर्ष की थी; पर उन दिनों सब ओर सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व की चर्चा से उसके मन पर सुभाष बाबू की आदर्श छवि अंकित हो गयी। इससे प्रेरित होकर उसने अपने पिताजी से कहकर एक खाकी वेशभूषा सिलवाई। इसे पहनकर वह अपने समवयस्क मित्रों के साथ प्रायः नगर की गलियों में भारत माता की जय और वन्दे मातरम् के नारे लगाता रहता था।
1942 में जब पूरे देश में गांधी जी के आह्नान पर ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन का नारा गूंजा, तो उसकी आग से महाकौशल एवं जबलपुर भी जल उठे। चार दिसम्बर, 1942 को जबलपुर में एक विशाल जुलूस निकला। यह जुलूस घंटाघर से प्रारम्भ होकर नगर की ओर बढ़ने लगा।
गुलाबसिंह उस समय केवल कक्षा सात का छात्र था। उसकी लम्बाई भी कम ही थी; पर उसके उत्साह में कोई कमी नहीं थी। उसने हर बार की तरह अपनी खाकी वेशभूषा पहनी और तिरंगा झंडा लेकर जुलूस में सबसे आगे पहुंच गया। इस वेश में वह एक वीर सैनिक जैसा ही लग रहा था। कुछ दूर आगे बढ़ने पर पुलिस ने जुलूस का रोककर सबको बिखर जाने को कहा। कुछ ढीले मन वाले पीछे हटने पर विचार करने लगे; पर गुलाबसिंह ने अपने हाथ के तिरंगे को ऊंचा उठाया और नारे लगाते हुए तेजी से आगे बढ़ चला। उसका यह साहस देखकर बाकी लोग भी जोश में आ गये।
पर इससे पुलिस बौखला गयी। पुलिस कप्तान के आदेश पर अचानक वहां गोली चलने लगी। पहली गोली सबसे आगे चल रहे गुलाबसिंह के सीने और पेट में लगी। वह वन्दे मातरम् कहता हुआ धरती पर गिर पड़ा। साथ चल रहे अन्य आंदोलनकारियों ने उसे तुरन्त अस्पताल पहुंचाया, जहां अगले दिन पांच नवम्बर, 1942 को उसने प्राण छोड़ दिये। इस प्रकार केवल 14 वर्ष की अल्पायु में ही वह मातृभूमि के ऋण से उऋण हो गया।
(संदर्भ : स्वतंत्रता सेनानी सचित्र कोश/क्रांतिकारी कोश)
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