पीएम नरेंद्र मोदी की आस्था से सभी परिचित हैं। उन्हें रामायण से खास लगाव है। 105 साल पुरानी लाहौर में छपी उर्दू रामायण को देखकर मोदी बहुत प्रभावित हुए थे। 650 पृष्ठों की मानस पांडुलिपी 1910 में लाहौर में प्रकाशित हुई थी। संकट मोचन मंदिर के महंत परिवार को ये रामायण दिल्ली के गुदड़ी बाजार में एक कबाड़ की दुकान में साल 2012 में 600 रुपए में मिली थी। संकट मोचन मंदिर और अखाड़ा गोस्वामी तुलसीदास के प्रमुख महंत और बीएचयू के प्रो. विशंभर नाथ मिश्रा ने बताया कि दिसंबर 2013 में जब नरेंद्र मोदी काशी आए थे तो उन्होंने ये दुर्लभ रामायण उन्हें दिखाई थी। राम विवाह, केवट प्रसंग, चिटकूट निवास और राज्याभिषेक की चित्रों को देखकर नरेंद्र मोदी ने कहा था,'अद्भुत धन्य हुआ देखकर, मानो साक्षात दर्शन हो गए।'
कबाड़ की दुकान में मिली थी रामायण
प्रो. विशंभर नाथ मिश्रा ने बताया कि तुलसी घाट पर तुलसी दास जी के शिष्य द्वारा 18वीं शताब्दी में हस्तलिखित पांडुलिपी 22 दिसंबर 2011 को हनुमान मंदिर से चोरी हो गई थी। तब महंत परिवार के लोग पांडुलिपियों का पता लगाने देश के कोने-कोने तक पहुंच गए। इस दौरान वो दिल्ली के गुदड़ी बाजार में एक कबाड़ की दुकान में पांडुलिपी का लगाने पहुंचे। यहां उन्हें लाहौर से प्रकाशित 1910 की दुर्लभ रामचरितमानस मिली। उन्होंने इसे 600 रुपए में खरीद लिया। बाद में पुलिस ने चोरों को गिरफ्तार कर पांडुलिपी बरामद कर ली थी।
प्रो. विशंभर नाथ मिश्रा ने बताया कि तुलसी घाट पर तुलसी दास जी के शिष्य द्वारा 18वीं शताब्दी में हस्तलिखित पांडुलिपी 22 दिसंबर 2011 को हनुमान मंदिर से चोरी हो गई थी। तब महंत परिवार के लोग पांडुलिपियों का पता लगाने देश के कोने-कोने तक पहुंच गए। इस दौरान वो दिल्ली के गुदड़ी बाजार में एक कबाड़ की दुकान में पांडुलिपी का लगाने पहुंचे। यहां उन्हें लाहौर से प्रकाशित 1910 की दुर्लभ रामचरितमानस मिली। उन्होंने इसे 600 रुपए में खरीद लिया। बाद में पुलिस ने चोरों को गिरफ्तार कर पांडुलिपी बरामद कर ली थी।
शिष्यों द्वारा लिखी पांडुलिपी सुरक्षित
1704 वाली रामचरितमानस की पांडुलिपि की ऑरिजनल प्रतियां आज भी बुलेट प्रूफ आलमारी में बंद है। 1910 में लाहौर से प्रकाशित उर्दू रामायण की ओरिजनल प्रतियां भी वॉटर प्रूफ अलमारी में है। लगभग 400 साल पुरानी राम जन्म से विवाह और उसके बाद के दुर्लभ चित्रों का संग्रह भी धरोहर के रूप में मौजूद है।
1704 वाली रामचरितमानस की पांडुलिपि की ऑरिजनल प्रतियां आज भी बुलेट प्रूफ आलमारी में बंद है। 1910 में लाहौर से प्रकाशित उर्दू रामायण की ओरिजनल प्रतियां भी वॉटर प्रूफ अलमारी में है। लगभग 400 साल पुरानी राम जन्म से विवाह और उसके बाद के दुर्लभ चित्रों का संग्रह भी धरोहर के रूप में मौजूद है।
पांडुलिपियों के जानकार उदय शंकर दुबे ने बताया कि लाहौर में प्रकाशित रामायण की पांडुलिपि को भदोही गोपीगंज कानूनगोपुर के शिवव्रत लाल ने लिखा था। बाद में वो राधा स्वामी संप्रदाय के संत हो गए। पहली बार उन्होंने बाल्मीकि रामायण का उर्दू में अनुवाद 650 पन्नों में किया। दस पन्नों की प्रस्तावना अत्यंत खूबसूरत है। रामकथा के जो चार चित्र अंदर बनाए गए वो बेजोड़ पेंटिंग है। राम विवाह और राज्याभिषेक की तस्वीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों स्वर्ग लोक से देख रहे हैं।
इटैलियन विधि से सुरक्षित हैं पांडुलिपियां
महंत परिवार के डॉ. वीएन मिश्रा ने बताया कि सारी पांडुलिपियों को डिजिटल फॉर्मेट में ऑनलाइन लाइब्रेरी की तरह बनाया जा रहा है। सारी पांडुलिपियों को इटैलियन विधि से पार्चमेंट पेपर में रखा गया है, जिससे सदियों तक वो खराब न हों। उन्होंने बताया कि 250 साल बाद भी प्राचीन 200 चित्रों का एल्बम है, जिसमें मानो पूरी रामायण समाहित है। इस एल्बम को भी डिजिटल किया जा रहा है।
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