द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तानाशाह एडोल्फ हिटलर समर्थित नाजी कैंप में तीन लाख यहूदियों की नृशंस हत्या में सहयोग देने के आरोप में जर्मनी के ऑशविच में किताब बेचने वाले 93 वर्षीय ऑस्कर ग्रोएनिंग के खिलाफ मंगलवार को मुकदमा शुरू किया गया। वैसे तब क्या थी यहूदियों की हालत। किस तरह नाजी उन्हें यातना देते थे। आइए एक बार फिर उस पर नजर डालते हैं।
1933 में जर्मनी की सत्ता पर काबिज होने के बाद हिटलर ने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की थी। उसके साम्राज्य में यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। यहूदियों के प्रति हिटलर की इस नफरत का नतीजा नरसंहार के रूप में सामने आया। मतलब, समूचे यहूदियों को जड़ से खत्म करने की सोची-समझी और योजनाबद्ध कोशिश।
होलोकास्ट इतिहास का वो नरसंहार था, जिसमें छह साल में तकरीबन 60 लाख यहूदियों की हत्या की दी गई थी। इनमें 15 लाख तो सिर्फ बच्चे थे। इस दौरान कई यहूदी देश छोड़कर भाग गए, तो कुछ कॉन्सन्ट्रेशन कैंप में क्रूरता के चलते तिल-तिल मरे। इस दौरान ऑशविच नाजी यंत्रणा कैंप यहूदियों का खात्मा करने की नाजियों की हत्यारी रणनीति का प्रतीक बन गया था।
पोलैंड में मौजूद इस यातना शिविर में धर्म, नस्ल, विचारधारा या शारीरिक कमजोरी के नाम पर यहूदियों को नाजियों के गैस चैंबर में भेज दिया जाता था। यहां यहूदियों, राजनीतिक विरोधियों, बीमारों और समलैंगिकों से जबरन काम लिया जाता था। यह कैंप ऐसी जगह था और इस तरह बनाया गया था कि वहां से कोई भाग न सके।
No comments:
Post a Comment