Monday, 20 April 2015

43).ऐंबैसडर , THE INDIAN HULK CAR

ऐंबैसडर कार का प्रॉडक्शन रुकने के साथ ही एक युग समाप्त हो गया। 2003 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने जब सरकारी कामकाज के लिए ऐंबैसडर की जगह बीएमडब्ल्यू को चुना, तब से ऐंबैसडर के लिए पतन का दौर शुरू हो गया था। हालांकि आम आदमी काफी पहले मारुति 800 अपनाकर इस कार से पल्ला झाड़ चुका था।

पहली ऐंबैसडर1958 में आई थी और करीब 60 दशक बाद हिन्दुस्तान मोटर्स ने पिछले दिनों वेस्ट बंगाल के उत्तराड़ा में इसके प्लांट में कार का प्रॉडक्शन रोक दिया। सीके बिड़ला ग्रुप की कंपनी एचएम के प्रवक्ता ने बताया कि इस कार को रिवाइव करने की सभी कोशिशें फेल हो गई थीं। 21 मई 2014 से इसके निर्माण को रोकने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं था।


1980 में जहां यह कार प्रतिवर्ष 24हजार यूनिट्स बिकती थी, वहीं 2000 तक आते आते इस कार की मात्र 6000 यूनिट्स की बिक पातीं। सत्तर और अस्सी के दशक में यह कार धूम मचाती थी। लेकिन बाद में मारुति सुजुकी, फोर्ड के आने के बाद इसका डाउनफॉल तेजी से हुआ और इसे सरकारी गाड़ी का तमगा पहना दिया गया।

वैसे जब से यह कार लॉन्च हुई थी तब से लाल बत्ती के साथ इसे प्रशासनिक और राजनैतिक गतिविधियों और कामों के लिए धड़कल्ले से यूज किया जाता रहा। हालांकि अभी भी एलीट क्लास के कुछ लोग इसका प्रयोग करते हैं जैसे कि आर्मी चीप और सोनिया गांधी, लेकिन ज्यादातर नेता अब ज्यादा सुरक्षित और लग्जरियस एसयूवी की ओर मुड़ चुके हैं।



1958 में कार का प्रॉडक्शन शुरू हुआ था। 1980 के दौर में इसकी 24 हजार यूनिट्स बनती थीं। अपने आखिरी दिनों में हाल ये हो गया था कि प्लांट में महज पांच कार एक दिन में बनने लगीं। जबकि, तुलनात्मक रूप से देखें तो इस समय मारुति सुजुकी हर रोज 5 हजार से ज्यादा कारें बनाती है।

विंटेज और क्लासिक कार इकट्ठा करने का शौक रखने वाले सालू चौधरी ने इस मौके पर कहा- आरआईपी एंबी, योर टाइम इज अप (तुम्हारी आत्मा को शांति मिले, तुम्हारा वक्त पूरा हुआ)

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