अंग्रेजों ने हमें चारित्रिक रूप से, और नैतिक रूप से नीचा दिखाने के लिए, कमज़ोर बनाने
के लिए, शराब के साथ एक काम और भी किया था। और उसमें भी हम भारतवासी काफी
डूब गए हैं। और वह दूसरा काम यह था - भारत के वासियों को वेश्यावृत्ति के रास्ते
पर धकेलना। बहुत खराब काम यह अंग्रेजों ने किया था।
आपको सुनकर ताज्जुब होगा, कि 1760 के पहले हिंदुस्तान में कोई शराब नहीं पीता था,
ऐसे ही, 1760 के पहले के जो दस्तावेज़ हैं, रिकॉर्ड हैं, वे बताते हैं कि इस देश में
कोई वेश्याघर नहीं था, वेश्यालय नहीं था। पूरे हिन्दुस्तान में ! ये अँगरेज़ थे जिंहोंने सबसे
पहला वेश्यालय खोल सन 1760 में प्लासी के युद्ध के बाद कलकत्ते में बसाया हुआ है, और
अंग्रेजों का बनाया हुआ है। सन 1760 से पहले देश की किसी भी गाँव में, किसी नगर में
वेश्याघर नाम की कोई भी चीज़ नहीं हुआ करती थी।लेकिन वेश्यालय और वेश्याघर इस
हिंदुस्तान में कभी नहीं बना।
पुराने ज़माने में तो हमारे देश में, हमने इतिहास में पढ़ा है, कुछ उपन्यास भी पढ़े हैं। हो
सकता है आपने एक उपन्यास पढ़ा हो अपने जीवन में - वैशाली की नगर वधू। सम्राट
अशोक के ज़माने की बात है, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य के ज़माने की बात है,
कि नगर वधू हुआ करती थी। हाँ, उस ज़माने में नगर वधू हुआ करती थी। लेकिन उसका
काम वेश्या के काम से बिलकुल अलग होता था। नगर वधु जो होती थी, वह पूरे नगर की
सम्मान और इज्ज़त वाली कोई मां और बहन हुआ करती थी, और नगर वधु के शरीर को
कोई भी पुरुष चाहे, तो अपनी वासना का शिकार नहीं बना सकता था। और नियम और
क़ानून ऐसे थे कि नगर वधू के शरीर को कोई छू भी नहीं सकता था। आप बोलेंगे - फिर यह
नगर वधू होती किसलिए थी? यह नगर वधू हुआ करती थी, समाज के लोगों को संगीत की
तालीम देने के लिए, शिक्षा देने के लिए। जैसे, नृत्य सिखाने के लिए। जैसे गायन सिखाने के
लिए। जैसे वाद्य सिखाने के लिए। वह संगीत की कला में बहुत निपुण कलाकार हुआ करती
थी, और उनके द्वारा संगीत कला का शिक्षण और प्रशिक्षण का काम चला करता था।
सम्राट अशोक के ज़माने में, सम्राट चन्द्रगुप्त के ज़माने में, सम्राट हर्षवर्धन के ज़माने में,
सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के ज़माने में, जितने भी भारत में चक्रवर्ती सम्राट रहे हैं,
उनके ज़माने जो नगर वधुएँ हुआ करती थीं, वे संगीत का शिक्षण और प्रशिक्षण देने वाली
उच्च, इज्ज़तदार, बहुत रौबदार महिलायें हुआ करती थीं। वे अपने शरीर का सौदा करने
वाली सामान्य वेश्याएं नहीं हुआ करती थीं।
वेश्याघरों, यह बड़ा दुश्चक्र जो हमारे देश में है, कि बहुत सारी माता, बहन, बेटियाँ जिनको
पैसे की इतनी ज्यादा आकांक्षा हो गयी है, कि थोड़े से पैसों में उनका गुज़ारा नहीं चलता -
उनको बहुत ज्यादा पैसा चाहिए अपना जीवन चलाने के लिए, बहुत ज्यादा पैसा चाहिए खर्च
चलाने के लिए, जिनके खर्च हज़ार, दो हज़ार, पांच हज़ार में पूरे नहीं होते, जिनके रोज़-मर्रा
के खर्च हज़ारों में होते हैं, दस-पंद्रह-बीस हज़ार से कम में जिनका जीवन नहीं चल सकता,
ऐसी मां, बहन, बेटियों ने इच्छा के साथ इस पेशे में अपने को डाल दिया है, और हम उनको
एक अंग्रेजी शब्द से संबोधित करते हैं - कॉल गर्ल। ये कॉल गर्ल वो बेटियाँ हैं, वो बहनें हैं, जो
अपनी इच्छा से इस 'बिज़नेस' में आई हैं, और मात्र पैसे के लिए अपने शरीर की नुमाईश
करके, अपने शरीर को बेच कर इस काम में लगी हुई हैं।
तो तीन स्तर पर यह दुष्कर्म इस देश में चल रहा है, और इस देश के करोड़ों लोगों की
तो तीन स्तर पर यह दुष्कर्म इस देश में चल रहा है, और इस देश के करोड़ों लोगों की
नैतिकता और चरित्र को तार-तार कर दिया है। पहले वेश्याघरों में अँगरेज़ सैनिक जाया
करते थे अपने शरीर की आग शांत करने लिए, अब उन्हीं वेश्याघरों में हमारे भारतवासी जा
रहे हैं, शरीर की आग शांत करने लिए। और जो जा रहे हैं, वे चरित्र और नैतिकता में गिरते
ही जा रहे हैं, डूबते ही जा रहे हैं। उनके पैरों में इतनी ताक़त नहीं है, उनके संकल्प में इतना
दम नहीं है, कि समाज के दूसरे लोगों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें।
बड़ा दुश्चक्र हमारे देश में है - शराब के बाद वेश्यावृत्ति का, जिसमें हम काफी
कुछ डूब गए हैं और करोड़ों भारतवासी इसमें शिकार हो गए हैं। तो मैं भारत स्वाभिमान की
तरफ से एक अपील करना चाहता हूँ, कि हमको इस वेश्यावृत्ति को ख़त्म करने का
आन्दोलन चलाना पड़ेगा - आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों। जैसे शराब में डूबे हुए
बीस बाइस करोड़ भारतवासियों को हम निकालना चाहते हैं, और उनको उच्च चरित्र और
उच्च नैतिकता देना चाहते हैं, वैसे ही इस वेश्त्यावृत्ति के घृणित काम में डूबी हुई बहनों,
व्यसनमुक्त भारतवर्ष बनाना, व्यसनमुक्त भारतीय समाज बनाना, तो दूसरा - वासनामुक्त
भारत बनाना, वासनामुक्त भारतीय समाज बनाना। यह भी दूसरा बड़ा आदर्श हमें रखना
पड़ेगा, तभी जाकर कोई बड़ी सामजिक क्रांति हम कर पायेंगे। आर्थिक क्रांति करना बहुत
आसान काम है, राजनैतिक क्रान्ति करना भी बहुत आसान काम है, लेकिन सामजिक क्रांति
करना, नैतिक क्रांति करना, चारित्रिक क्रांति करना बहुत मुश्किल काम होता है, बहुत ऊंचा
काम होता है। इसको करने वाले भी विरले होते हैं, और करने वाले भी संख्या में बहुत कम
होते हैं। तो आप सभी से मेरी विनम्र प्रार्थना है, विनम्र निवेदन है कि इस वासना में डूबे हुए
भाइओं को, और इस वासना के कीचड में लिपटी हमारी मां, बहनों, बेटियों को जल्दी से
जल्दी निकालने के लिए कमर कसकर अपने अपने स्थानीय स्तर पर अभियान चलायें, और
इस अभियान को एक सार्थक और सफल मुकाम तक पहुंचाएं।
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